नई दिल्ली - फुटबॉल में अगर जीत मिले तो प्रशंसक राहों में पलके बिछा देते हैं लेकिन यदि वही खिलाड़ी हार जाए तो उनके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता है जैसे उन्होंने देशद्रोह किया हो । फुटबॉल को राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़कर भी देखा जाता है तभी तो हारने वाली टीमें अपने देश पहुंचने से भी डरती हैं।
उत्तर कोरिया के खिलाड़ियों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। खिलाड़ियों को डर है कि कहीं उन्हें कोयले की खदानों में काम करने ना लगा दिया जाए। नाईजीरिया की टीम की हालत तो और भी खराब है। वहां के राष्ट्रपति ने टीम पर दो साल तक किसी भी टूर्नामेंट में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
जर्मनी के हाथों शर्मनाक हार झेल विश्व कप से बाहर हुई इंग्लैड के खिलाड़ी तो फिर भी खुद को भाग्यशाली समझ सकते है क्योंकि उनकी आलोचना तो सिर्फ टेबलॉयड अखबारों तक ही सीमित है लेकिन उत्तर कोरिया के खिलाड़ी इतने भाग्यशाली नहीं हैं।
पुर्तगाल के हाथों 7-0 से हार कर उत्तर कोरिया पहुंची टीम के लिए हालात बेहद खराब हैं । टीम के कोच मून की नाम इसे टीम के लिए बेहद खराब निशानी मानते हैं। वो कहते हैं कि अगर टीम जीत जाती है तो उन्हें बड़े-बड़े घरों से नवाजा जाता है लेकिन हारते ही सबकुछ बदल जाता है और खिलाड़ियों को हार की कीमत कोयले की खानों में काम करके चुकानी पड़ती है। मून को 2004 में तो देश तक छोड़कर भागना पड़ा था।
: न्यूज़लाइन स्पोर्टस डेस्क
ऐसा नहीं होना चाहिए।
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