Saturday, July 3, 2010

हंगामों से भरा होगा मॉनसून सत्र


शुक्रवार को कैबिनेट की संसदीय मामलों की समिति ने मॉनसून सत्र की तारीख़ें फ़ाइनल कर दीं है। मॉनसून सत्र 26 जुलाई से शुरू होकर 27 अगस्त तक चलेगा। संसद का यह सत्र सरकार के लिए मुशकिलो से भरा होगा, क्योकि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए बहुत सारे मुद्दे हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की क़ीमतों में वृद्धि को लेकर विपक्ष हमले की तैयारी कर रहा है। ख़ासतौर पर मिट्टी के तेल के दाम बढ़ाने से कांग्रेस के अंदर ही असंतोष हैं, और यूपीए के सहयोगी दल भी सरकार से ख़ुश नहीं हैं। जहां विपक्ष में बैठी बीजेपी और लेफ़्ट सरकार के अंदर के इन विरोधाभासों का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे वहीं कांग्रेस भी इसमें राजनीतिक लाभ तलाश रही है। वह बीजेपी और लेफ्ट को एक साथ दिखाकर लेफ़्ट की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठा रही है। संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने बताया कि संसदीय मामलों की समिति सत्र की तारीख़ों की अपनी सिफ़ारिशें प्रधानमंत्री को भेजेंगी। जहां से वे अंतिम मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास जाएंगी। संसद का सत्र राष्ट्रपति ही बुलाते हैं। महंगाई के अलावा इस सत्र में जम्मू - कश्मीर की स्थिति, नक्सलवाद , जाति आधारित जनगणना , भोपाल गैस कांड जैसे सवालों पर भी हंगामा होगा। पिछले सत्र में भारी हंगामे और हिंसा के बीच महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पास हो गया था। मगर सरकार इसे लोकसभा में लाने का साहस नहीं जुटा पा रही है। महिला बिल का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों के बड़े नेता लोकसभा के सदस्य हैं। लालू प्रसाद यादव, मुलायम यादव, शरद यादव ने कहा कि अगर मार्शल के सहारे बिल को लोकसभा में पास करवाने की कोशिश की जाएगी, तो सदन में युद्ध जैसी स्थिति बना दी जाएगी। राज्यसभा में बिल का भयानक विरोध कर रहे एसपी, आरजेडी और जेडी यू के सदस्यों को संभालने के लिए मार्शल बुलाना पड़े थे। फ़िलहाल सरकार इसे लोकसभा में लाने से बचना चाह रही है। कांग्रेस को लगता है कि महिला बिल का राजनीतिक लाभ वह हासिल कर चुकी है

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