Friday, June 18, 2010

फिल्म समीक्षा: नहीं गरज पाया ‘रावण’!

पिछले दिनों फिल्म ‘राजनीति’ के रूप में ‘महाभारत’ ने दर्शकों को काफी लुभाया और इस सप्ताह बारी है ‘रामायण’ की ‘रावण’ के रूप और जब फिल्म मणि रत्नम की हो तो अपेक्षाएं और बढ़ जाती हैं।

‘रावण’ में अच्छाई और बुराई के कई दौर हैं, जैसे फिल्म का पहला एक घंटा बहुत ही उबाऊ और फीका है, जबकि मध्य भाग कुछ-कुछ दिल को छूता है, लेकिन अंत आते-आते और क्लाइमैक्स पर तो फिल्म धराशायी हो जाती है।

अब आएं इस बात पर कि आखिर वे कौन-से मुद्दे हैं, जिन्होंने ‘रावण’ को कमजोर बना दिया है – सबसे पहले तो यह कि शीर्षक से ही दर्शकों को यह अपेक्षा होती है कि फिल्म रावण की तरह ही शक्तिशाली होगी, लेकिन बीरा रावण के उस रूप को साकार नहीं कर पाता, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर और बीमार व्यक्ति के रूप में ही उभरकर सामने आता है, जो इस चरित्र को भयानक बनाने के बजाय उस चरित्र का उपहास करता हुआ दिखाई देता है।


अभिषेक ने ‘युवा’ और ‘गुरु’ में बेहतरीन काम किया था, लेकिन न जाने क्यों वे इस फिल्म में प्रभावित नहीं कर पाए हैं। उनकी संवाद अदायगी भी कहीं-कहीं अनुकूल साबित नहीं होती।

: न्यूज़लाइन एजेंसीज़

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