
नई दिल्ली : आर्थिक क्षेत्र में दुनिया भर में अपना लोहा मनवा चुके भारत को बडा धक्का लगा है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को दुनिया भर के देशों की सूची में पांचवा स्थान प्राप्त हुआ। लेकिन ये स्थान प्राप्त होना, कोई ख़ुशी का मौक़ा नहीं है बल्कि एक गहरी सोच और मंथन का विषय है। लगातार तेजी से आर्थिक तरक्की कर रहे भारत को, आर्थिक मोर्चे पर ही बड़ा धक्का लग गया है।
दरअसल अब भारत विश्व का पांचवा सबसे बड़ा कर्जदार देश बन गया है। सितंबर 2010 को समाप्त तिमाही के दौरान भारत के उपर 1,332,195 करोड़ का बाहरी कर्ज रहा है। इससे पहले मार्च 2010 को समाप्त तिमाही में बाहरी कर्ज 1,184,998 करोड़ रुपये रहा था।
इस बात का खुलासा वर्ल्ड बैंक के ‘ग्लोबल डेवेलपमेंट फाइनैंस 2010’ रिपोर्ट में हुआ है। इस लिस्ट में दुनियाभर के 20 सबसे कर्जदार देशों के नाम का जिक्र है। जिसमें भारत पांचवे पायदान पर रहा है।
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आज लोक सभा में पूछे गए एक प्रश्न के जबाव में यह जानकारी संसद को दी। उन्होंने यह भी बताया कि इस लिस्ट में पहले नंबर पर रूस का नाम है। जबकी दूसरे नंबर पर चीन, तीसरे पायदान पर तुर्की और चौथे स्थान पर ब्राजील का नाम है।
ग़ौरतलब है कि अगर केंद्रीय सरकार, स्विस बैंकों में जमा काले धन को भारत वापस लाने में सफ़ल हो पाती है तो भारत के सर से क़र्ज़ का एक बडा बोझ काफ़ी हद तक हल्का हो सकेगा। एक अनुमान के मुताबिक़, स्विस बैंकों में जमा भारत के 87 लाख करोड रूपयों में से कितना पैसा इन्कम टैक्स के ज़रिये सरकारी खातों में जाएगा, इस बात का तो अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता। अगर काला धन वापस आ जाता है तो भारत, अपने ऊपर चढ़ा क़र्ज़ उतारकर दूसरे देशों को क़र्ज़ देने की स्थिति में आ जाएगा।
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