
दुबई : मिस्र और लीबिया के बाद यमन में शुरु हुई सरकार विरोधी गतिविधियों ने रफ़्तार पकड़ ली है और इनमें एक नई जान आ गई है। यमन के राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह का 32 साल का शासन खत्म होता दिख रहा है। सालेह की सेना के तीन जनरल और उनके कई राजदूतों ने सोमवार को पाला बदलकर सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों से हाथ मिला लिया है। सैन्य अधिकारियों के इस क़दम ने राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला को तगड़ा झटका दिया है और विपक्षी खेमे को मज़बूती प्रदान की है।
इस घटना के बाद राष्ट्रपति अब्दुल्ला सालेह का 32 साल का शासन लड़खड़ाने लगा है। यमन की सेना के ये तीनों अधिकारी सालेह की इस्तीफे की मांग को लेकर विपक्षी खेमे में शामिल हो गए। सालेह ने रविवार को सरकार को बर्खास्त कर दिया। सरकारी समाचार एजेंसी साबा की रिपोर्ट के मुताबिक, सालेह ने मंत्रियों से अगले आदेश तक कार्यवाहक की तरह काम करते रहने को कहा है।
अल जजीरा चैनल के मुताबिक़, यमन के दक्षिणी प्रांत अदन के गवर्नर अहमद कताबी भी प्रदर्शनकारियों के साथ हो गए हैं। सड़कों पर टैंकों और बख्तरबंद गाडि़यों की तैनाती के मद्देनजर प्रदर्शनकारियों के साथ संघर्ष की आशंका जताई जा रही है। इन तीन अधिकारियों में सबसे सीनियर मेजर जनरल अली मोहसिन अल अहमर हैं। वह लंबे समय तक सालेह के विश्वस्त रहे हैं और सेना की फर्स्ट आर्म्ड डिविजन के कमांडर रह चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, सेना के 90 फीसदी लोग प्रदर्शनकारियों का साथ दे रहे हैं।
यमन के दो अन्य अधिकारियों के नाम मोहम्मद अली मोहसिन और हमदी अल कुसैबी है। यह दोनों ब्रिगेडियर रैंक के हैं। इन सैन्य अधिकारियों के विपक्षी खेमे में शामिल होने की खबर उस घटना के बाद आई है, जिसमें शुक्रवार को 52 लोगों के मारे जाने के बाद लोग समूचे देश में उमड़ पड़े थे। तब सालेह के सुरक्षा बलों ने सना में प्रदर्शनकारियों पर छत से गोलीबारी की थी। यमन के तानाशाह के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि वह सत्ता बचाए रखने के लिए सेना के जिन जनरलों पर भरोसा कर रहे थे, उन्हीं लोगों ने उनसे गद्दी छोड़ने को कहा है। इतना ही नहीं, इन जनरलों ने प्रदर्शनकारियों को बचाने के लिए टैंक और बख्तरबंद वाहन तैनात कर दिए हैं।
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