
दारुल उलूम में वीसी के पद पर मचा बवाल कुछ हद तक शांत हो गया है। देवबंद में हुई मजलिस-ए-शूरा की बैठक में मौलाना गुलाम मौहम्मद वस्तानवी को अभी उनके पद पर बहाल रखा गया है, हालांकि उनके मोदी संबंधी बयान की जांच के लिये मजलिस ने एक तीन सद्स्यीय जांच कमेटी का गठन किया है जो अपनी रिपोर्ट तीन माह तक सौंपेगी। तब तक मौलाना अबुल कासिम को कार्यकारी वीसी बनाया गया है। मतलब साफ़ है कि मजलिस-ए-शूरा ने एक तीर से दो निशाने किये हैं, जिसमें उन्होंने न तो मौलाना वस्तानवी के समर्थकों को निराश किया है और न ही उनके विरोधियों को।
दारुल उलूम देवबंद विश्व में इस्लामी शिक्षा का दूसरा बड़ा केंद्र है। यही कारण है कि पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा देवबंदी विचारधारा से जुड़े मुसलमानों के लिये भी दारुल उलूम काफ़ी महत्वपूर्ण है। ज़ाहिर है यहां होने वाली हर गतिविधि को अंतर्राष्ट्रीय तवज्जो मिलती है। 10 जनवरी को मौलाना मरगूबुर्रहमान के निधन के बाद इस इदारे की कमान सौंपी गई मूलत: गुजरात के रहने वाले मौलाना गुलाम मौहम्म्द वस्तानवी को। और इसके बाद शुरू हुआ शह और मात का खेल। दरअसल, मौलाना वस्तानवी का पहले दिन से ही विरोध शुरू हो गया था। जानकारों के मुताबिक इस विरोध को हवा मदनी परिवार के लोग दे रहे थे, जो दारुल उलूम से किसी भी कीमत पर अपना वर्चस्व नहीं छोड़ना चाहते।
वहीं अचानक एक ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने वस्तानवी विरोधियों को एक नया हथियार दे दिया। हुआ यूं कि एक अंग्रेज़ी अख़बार को दिये अपने साक्षात्कार में मौलाना वस्तानवी ने गुजरात के विकास पर अपनी सकारात्मक टिप्पणी की थी। इसके बाद मौलाना वस्तानवी के विरोधियों ने उन्हें मोदी का समर्थक बता कर उनसे इस्तीफ़े की मांग कर डाली। हालांकि मौलाना वस्तानवी ने इस पूरे मामले पर मीडिया के सामने सफ़ाई भी दी, लेकिन उनके ख़िलाफ़ दारुल उलूम के कुछ छात्र आंदोलनरत हो गये। विरोध के बीच वस्तानवी के समर्थन में भी लोग और संगठन लामबंद होने लगे। यही बात मौलाना वस्तानवी के पक्ष में गई और उन्होंने मजलिस-ए-शूरा को अपना इस्तीफ़ा देने का ऐलान कर डाला।
हालांकि ऐसे कयास लगाये जा रहे थे कि मजलिस-ए-शूरा की बैठक के बाद मौलाना वस्तानवी की देवबंद से विदाई हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मजलिस-ए-शूरा के 14 सदस्यों ने इस पूरे मसले पर जो हल निकाला वो काफ़ी विरोधाभासी है । मजलिस ने मौलाना वस्तानवी को वीसी पद से नहीं हटाया बल्कि उनके साथ-साथ मौलाना अबुल क़ासिम को कार्यवाहक वीसी के पद पर नियुक्त कर दिया। वहीं उनके गुजरात संबंधी बयान की जांच के लिये एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन भी कर डाला। यह कमेटी तीन माह में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, तब तक मौलाना अबुल क़ासिम एक्टिंग वीसी के तौर पर कार्य करेंगे।
मतलब साफ़ है कि मजलिस-ए-शूरा ने न तुम जीते न हम हारे की तर्ज़ पर न तो किसी को खुश होने का मौका दिया है और न ही दुखी होने का। तीन माह के बाद जांच कमेटी जो रिपोर्ट सौंपेगी वही मौलाना ग़ुलाम वस्तानवी का भविष्य तय करेगी।
ख़ालिद हसन (न्यूज़लाइन ब्यूरो)