Friday, October 22, 2010

फैसले में ‘रखैल’ शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति



नई दिल्ली: प्रख्यात वकील और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने लिव-इन रिश्तों में रह रही महिलाओं के गुजारे के अधिकार के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ‘रखैल’ शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई।

उच्चतम न्यायालय में गुस्से में नजर आ रहीं जयसिंह ने न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और टीएस ठाकुर की सदस्यता वाली पीठ से कहा कि फैसले में इस्तेमाल किया गया शब्द बेहद आपत्तिजनक है और इसे हटाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट 21वीं सदी में किसी महिला के लिए ‘रखैल’ शब्द का इस्तेमाल आखिर कैसे कर सकता है? क्या कोई महिला यह कह सकती है कि उसने एक पुरुष को रखा है? जयसिंह ने इस बात आश्चर्य जताया कि देश का उच्चतम न्यायालय किसी महिला के खिलाफ ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकता है।

एएसजी का रुख देखकर पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति काटजू ने उनसे कहा कि वह न्यायालय के सामने खुद को मुकदमे तक ही सीमित रखें। न्यायमूर्ति ठाकुर ने दखल देते हुए जयसिंह से पूछा कि क्या ‘कीप’ के बदले ‘कॉंकबाइन’ शब्द का इस्तेमाल ज्यादा उचित रहेगा? इस पर, एएसजी ने कहा कि उनकी आपत्ति मुख्यत: पीठ की ओर से कल सुनाए गए फैसले में ‘कीप’ अर्थात ‘रखैल’ शब्द के इस्तेमाल पर है।

गौरतलब है कि इंदिरा जयसिंह घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण कानून का मसौदा तैयार करने में भी शामिल रही हैं। एक अहम फैसले में गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन रिश्तों में रह रही कोई महिला गुजारा भत्ते की हकदार उस वक्त तक नहीं है, जब तक वह कुछ निश्चित मानदंड पूरे नहीं करती। न्यायालय ने यह भी कहा था कि महज कुछ सप्ताहांत साथ गुजार लेने या एक रात गुजार लेने से यह एक घरेलू रिश्ता नहीं हो जाता।

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