(न्यूज़लाईन विशेष) : शब-ए-बराअत यानि बरी (मुक्त) होने की रात, शब यानि रात और बराअत का अरबी में मतलब होता है मुक्ति। इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की 14 तारीख़ को शब-ए-बराअत कहते हैं। कहा जाता है कि इसी रात में लोगों के गुनाहों और नेकियों का हिसाब किताब किया जाता है।
मान्यता है के इस रात फ़रिश्ते लोगों द्वारा साल भर किये गये क्रिया कलापों का लेख-जोखा करते हैं। यही नहीं इसी रात जन्म लेने वाले और मरने वालों की सूची भी तैयार की जाती है। यही वजह है कि इस रात की एक विशेषता है और इस रात को रात भर जाग कर इबादत की जाती है और रोकर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी जाती है।
इस रात को शब क़द्र यानि कदर करने की रात भी कहा जाता है, जिसमें आसमान से अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है। लोग क़ब्रिस्तान जा कर अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी क़ब्रों पर फ़ातिहा और दुरूद शरीफ़ पढ़ कर उन्हें सवाब (पुण्य) भेजते हैं। यही वजह है कि विद्वानों ने इस रात में की गई इबादत का सवाब कई सौ गुना ज़्यादा बताया है।
शब-ए-बराअत से अगले दिन यानि 15 शाबान को अधिकतर लोग रोज़ा रखते हैं, इस दिन रोज़ा रखना काफ़ी पुण्य बताया गया है। दरअसल शाबान माह से अगला महीना रमज़ान का होता है, जिसमें सभी मुस्लिम 30 दिनों तक रोज़े रखते हैं। पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शाबान माह की 15 तारीख से ही रोज़े रखने शुरू कर देते थे और पूरी तरह अल्लाह की इबादत में लग जाते थे।
इस पवित्र माह से इस्लामे इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना भी जुड़ी हुई है। इस महीने में मक्का के मोमिनों और मुशरिकों के बीच पहली जंग हुई थी, जिसे जंग-ए-बदर भी कहा जाता है। इस जंग में रसूले करीम ह. मुहम्मद (स.अ.व.) का एक दांत मुबारक शहीद हो गया था। लेकिन इस जंग को जीतकर उन्होंने असत्य पर सत्य की जीत का संदेश दिया था। यही वजह है कि विभिन्न विद्वानों ने इस मुबारक रात की कईं फ़ज़ीलत बयान की हैं। और इस रात की इबादत को और रातों की इबादत से कई गुना बेहतर बताया है।
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