
देश में अब तक के सबसे बडा आंका जाने वाला एस-बैंड स्पक्ट्रम घोटाले में घिरी केंद्र सरकार ने अपने इस फ़ैसले से विपक्ष को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास किया है। एस-बैंड स्पेक्ट्रम में इसरो-देवास के बीच हुई डील में राजस्व को २ लाख करोड के नुक़सान पहुंचने का अनुमान लगाया था। अब कैबिनेट ने इस क़रार को रद्द कर, इस घोटाले के कारण बढ़ी सरकार की मुसीबतों को घटाने की कोशिश की है।
कैबिनेट सुरक्षा समिति ने इसरो-देवास डील रद्द करने का फैसला किया है। सरकार ने इस एस-बैंड डील को रद्द कर दिया है। इस डील में देवास मल्टीमीडिया को लाइसेंस सस्ते में दिये जाने की बात सामने आने के बाद से ही यह डील कई आरोपों से घिरी हुई थी। रक्षा मंत्री ने भी इस मामले में चेतावनी देते हुए कहा था कि किसी भी तरह की हेराफेरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। आज सुबह से ही इस डील को लेकर मीटिंग चल रही थी। मीटिंग के दौरान आख़िरकार इस डील को रद्द करने का फ़ैसला लिया गया।
ग़ौरतलब है कि इसरो ने जनवरी, 2005में देवास मल्टीमीडिया के साथ हुए एस बैंड करार की जानकारी चार महीने बाद मई, 2005 में अंतरिक्ष आयोग और कैबिनेट को नहीं दी थी। जबकि एक निजी समाचार चैनल ने दावा किया था कि मई, 2005 में कैबिनेट मीटिंग के नोट के मुताबिक इसरो ने कहा था कि एस बैंड स्पेक्ट्रम को लेकर एक सर्विस प्रोवाइडर उनके संज्ञान में है। जबकि हकीकत यह है कि इस नोट के लिखे जाने से चार महीने पहले ही इसरो की कारोबारी ईकाई एंट्रिक्स और देवास मल्टीमीडिया के बीच समझौता हो चुका था।
चूंकि, अंतरिक्ष विभाग उन दिनों प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पास था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस मामले की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं थी? क्या देश की बेशकीमती बैंड से जुड़े इस मामले में किसी कैबिनेट मंत्री की इजाजत नहीं ली गई?
या फिर यूं कहा जाए कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कल एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अपनी व्यथा ज़ाहिर करते हुए ये बात कहकर कि "गठबंधन की अपनी मजबूरियां होती हैं", कोई राज़ छुपाने की कोशिश की है।
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