Friday, January 21, 2011

ड्रैगन की समझदारी और हमारी लाचारी

ख़ालिद हसन, (न्यूज़लाईन विशेष)
ड्रैगन एक बार फ़िर आग उगल रहा है, और वो भी विश्व की महाशक्ति अमेरिका के सामने। और हम लाचर हैं, सरकार और विपक्ष में तिरंगा फ़हराने को लेकर तनातनी चल रही है। चीन के राष्ट्रपति हु जिंताओ अपनी संप्रभुता के मुद्दे पर अमेरिका को उसकी धरती पर धमका रहे हैं, और हमारी सरकार और विपक्ष देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर एक दूसरे की खिंचाई कर रहे हैं।

चीन के राष्ट्रपति हु जिंताओ इस समय अमेरिका के चार दिन के राजकीय दौरे पर हैं, खबर है कि हु ने ओबामा को चीन के तथाकथित अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप ना करने की हिदायत दी है, और वो भी तिब्बत और ताईवान के मुद्दे पर। दरअसल कल ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीनी राष्ट्र्पति हु जिंताओ को तिब्बत के मसले पर दलाई लामा के प्रतिनिधियों से वार्ता करने का सुझाव दिया था, लेकिन आज ड्रैगन ने साफ़ कर दिया कि यह उसका अंदरूनी मसला है, और वह (अमेरिका) तिब्बत से दूर रहे नहीं तो इसका असर दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ सकता है। इससे चीन की बेहतर कूट्नीतिक सक्षमता का पता चलता है।

चीनी राष्ट्रपति का यह बयान हमारे लिये सीख देने वाला है और वह भी ऎसे वक़्त में जब हम गणतंत्र दिवस पर अपने ही देश में तिरंगा फ़हराने को लेकर विवाद में हैं। ज़्यादा वक़्त नहीं बीता है जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत की यात्रा की थी, और हम आतंकवाद से लेकर कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सिर्फ़ अमेरिका के सामने गिड़गिड़ाते नज़र आये। हद तो तब हो गई जब हमारे मेहमान बन कर पधारे ओबामा ने पाकिस्तान की तारीफ़ों के पुल बांधे।

अब बात हमारे और चीन के संबंधों की, अमेरिका को उसकी धरती पर धमकाने वाला चीन कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के लिये अलग से नत्थी वीज़ा दे रहा है और हम चुप बैठे है। यही नहीं चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा कर रहा है। ये अलग बात है कि चीन एशियाई महाशक्ति है, लेकिन हम यह क्यूं भूल जाते हैं कि हम भी किसी से कम नहीं। आखिरकार क्यूं हम कूटनीतिक रूप से अक्षम है?

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