
सत्ता पर क़ाबिज़ रहने के लिये अपनी ज़िद पर अड़े लीबिया के राष्ट्रपति गद्दाफ़ी पर अंतरराष्ट्रीय फौज ने कार्रवाई की शुरूआत कर दी है। लीबिया की वायु सीमा को भेद कर ब्रिटेन की मिसाइलें भी गद्दाफी की रियासत पर टूट पड़ी हैं। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने रॉकेट दागे हैं। लीबिया टीवी के मुताबिक़ इन हमलों में 48 लोगों की जान गई है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पास किए गए प्रस्ताव को लागू करने के लिए लीबिया में कार्रवाई की शुरूआत कर दी गई है। लेकिन इस लड़ाई में आम जनता को शिकार होना पड़ रहा है। अमेरिकी सैनिक कार्रवाई के साथ ब्रिटिश पनडुब्बियों से छूटे टॉमहॉक मिसाइलों ने लीबिया के ठिकानों को निशाना बनाया है। अब तक 100 से ज्यादा मिसाइलें दागी जा चुकी हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लीबिया के खिलाफ 'सीमित कार्रवाई' करने का एलान किया है. चीन ने लीबिया पर भारी हमले पर अफसोस व्यक्त किया है और कहा है कि चीन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हिंसा के इस्तेमाल के खिलाफ है. जापान ने लीबिया के खिलाफ कार्रवाई का स्वागत किया है तो अफ्रीकी यूनियन ने हमला तुरंत रोकने को कहा है.
एक अमेरिकी फौजी अधिकारी के मुताबिक जहाजों और पनडुब्बियों से एक साथ किए जा रहे हमले में तटवर्ती इलाके के कम से कम 20 ठिकानों को निशाना बनाया गया है। लीबियाई शासक कर्नल गद्दाफी को विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने की कोशिश की जा रही है। अमेरिका के इनकार करने के बाद ब्रिटेन के साथ मिल कर फ्रांस इस हमले का नेतृत्व कर रहा है। शनिवार को हमलों की शुरुआत फ्रांस के विमानों ने ही की।
लंदन में प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा, "आज की रात ब्रिटिश सेना लीबिया पर कार्रवाई कर रही है. ये लोग अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का हिस्सा है जो संयुक्त राष्ट्र की इच्छा का पालन करने और लीबिया के लोगों को बचाने के लिए एक साथ आए हैं." कैमरन ने ये भी कहा, "कर्नल गद्दाफी की अपने ही लोगों के खिलाफ क्रूरता हम सबने देखी है और वो जिस युद्धविराम की बात कर रहे थे वो कभी लागू ही नहीं हुआ बल्कि लीबियाई नागरिकों के खिलाफ और ज्यादा क्रूरता दिखाई गई."
ब्रिटिश सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल जॉन लॉरीमेर ने कहा कि मिसाइलों से हमला शुरुआती कदम है, "ब्रिटेन और सहयोगी ताकतें तब तक कार्रवाई करती रहेंगी जब तक कर्नल गद्दाफी और उनकी सेना को ये समझ नहीं आ जाता कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उन्हें अपने ही लोगों को मारते देखता नहीं रह सकता."
ब्रिटेन ने हमले में हिस्सा लेने के लिए अपने टॉरनाडो और टायफून लड़ाकू विमानों का बेड़ा लीबिया के पास तैनात कर दिया है. लीबिया पर सैनिक कार्रवाई को ऑपरेशन एल्लामी नाम दिया गया है. साइप्रस के एक्रोतिरी में ब्रिटेन का एक वायुसेना बेस है, हमले के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. भूमध्यसागर में ब्रिटेन के दो लड़ाकू जहाज एचएमएस कंबरलैंड और एचएमएस वेस्टमिनिस्टर पहले से ही मौजूद हैं. 2003 के इराक हमले के साए से बाहर निकलने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने लीबिया पर हमले को जरूरी, उचित और कानूनी कहा. कैमरन ने ये भी कहा, "ये कानूनी रूप से सही है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अरब लीग और कई दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इसका समर्थन किया है."
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गुरुवार को प्रस्ताव पास कर लीबिया में नागरिकों को बचाने और युद्धविराम लागू कराने के लिए हर तरह के उपाय करने की अनुमति दे दी. पिछले हफ्ते अरब लीग के विदेश मंत्रियों ने पश्चिमी देशों से लीबिया पर नो फ्लाई जोन लागू करने की मांग की. इसके जवाब में पश्चिमी देशों ने अरब जगत से सैनिक कार्रवाई के लिए समर्थन देने को कहा. इसके बाद शनिवार को पेरिस में सैनिक कार्रवाई पर विचार करने के लिए बुलाई गई बैठक में जॉर्डन, मोरक्को, कतर, संयुक्त अरब अमीरात और अरब लीग के महासचिव अम्र मूसा ने हिस्सा लिया. कतर और बेल्जियम, नीदरलैंड्स, डेनमार्क, नॉर्वे समेत कई यूरोपीय देशों ने लीबिया पर हमले में शामिल होने की बात कही है।

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