नक्सल प्रभावित कई दूरस्थ इलाकों में एक अलग तरह की आउटसोर्सिंग का तेजी से प्रसार हो रहा है। ऐसे इलाकों में जान के खतरे के डर के चलते लंबे समय तक स्कूलों से अनुपस्थित रहने वाले शिक्षक अब अपनी ओर से कक्षाओं में पढ़ाने के लिए स्थानीय युवकों को किराए पर नियुक्त कर रहे हैं। ये शिक्षक ऐसे युवकों को अपना आधा वेतन देते हैं।
यह स्थिति दोनों के लिए करीब करीब फायदेमंद होती है। शिक्षकों का काम हो जाता है और स्थानीय, अर्धशिक्षित बेरोजगार युवकों को काम मिल जाता है। लेकिन इसमें छात्रों की शिक्षा दाँव पर लग जाती है। क्योंकि शिक्षकों को घर पर रहते हुए भी आधा वेतन मिल जाता है और अर्धशिक्षित होने के बावजूद युवक स्कूलों में छात्रों को पढ़ाते हैं तथा आधा वेतन भी पा जाते हैं। एक सरकारी अधिकारी का कहना है कि यह चिंताजनक बात है। हम कल्पना कर सकते हैं, ऐसे स्कूलों में शिक्षा का स्तर क्या होगा। हम उम्मीद करते है कि जैसे जैसे सुरक्षा बल ज्यादा से ज्यादा नक्सली बहुल इलाकों पर नियंत्रण करेंगे, वैसे-वैसे स्थिति में सुधार होगा।
छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा में यह चलन बढ़ता जा रहा है क्योंकि यहां के दूरस्थ इलाकों में माओवादियों की मौजूदगी और सुरक्षा के अभाव के कारण स्कूल के निरीक्षक कभी कभार ही असलियत का पता करने जा पाते हैं।
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